vinod upadhyay

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बुधवार, 12 मार्च 2014

भोले को न भाए शंखनाद

यूं तो किसी भी देव या देवी की पूजा शंख की ध्वनि के बिना अधूरी मानी जाती है। पर भगवान शंकर की पूजा में न तो शंख बजाया जाता है और न ही इससे जल चढ़ाया जाता है। कहते हैं शंख 14 रत्नों में से एक है। समुद्र मंथन के समय इसको निकाला गया था। शंख अपने आप में दिव्य और पवित्र है। शंख की ध्वनि संपूर्ण वातावरण को निर्मल और चेतन्य बनाती है। प्रत्येक साधना में शंख को विशेष स्थान दिया जाता है। उसके अंदर पंचामृत भरकर के सभी लोगों के ऊपर छिड़का जाता है। इसे भगवान विष्णु ने स्वयं अपने हाथों में धारण किया है। इसलिए शंख को वरदायक और बहुत ही शक्तिशाली माना गया है। शंख में त्रिदेवों और त्रिदेवियों का निवास माना गया है। इसलिए सभी देवी देवताओं की पूजा में शंख का उपयोगह किया जाता है। शंख कई तरह के होते हैं जिनमें से तीन प्रमुख माने गए हैं। जो कि क्रमशः दक्षिणावृत्ति शंख, वामवर्ति शंख, मध्यवर्ती शंख। इसके अतिरिक्त भी शंख के अनेक प्रकार है जिनमें प्रमुख रूप से कांटेदार शंख इसे सूर्य शंख भी कहा जाता है। शंख की आकृति का भी एक गहरा रहस्य है। अगर बहुत छोटे छोटे शंख हों तो उन्हें इच्छापूर्ति वाले शंख माना गया है। मध्यम शंख सिद्धि वृत्ति के लिए माने गए हैं। और बड़े शंख अध्यात्मिक उन्नति पूजा पाठ के लिए माने गए हैं। शंख जिसके बिना कोई भी पूजा अधूरी मानी गई है। जिसके बारे में धार्मिक ग्रंथों में भी काफी लिखा गया है। क्यों कि पूजा में शंख बजाने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। शंख को निधि (धन) का प्रतीक माना जाता है। मान्यता है कि शंख को घर में रखने से अनिष्ट का नाश होता है। और सौभाग्य में वृद्धि होती है। शंख बजाने से दूराचार दूर होते हैं। पाप गरीबी दूषित विचार का नाश होता है। कहते हैं कि अगर शंख में जल भरकर भगवान का अभिषेक कर दिया जाए तो देवता शीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। भगवान विष्णु को शंख बहुत ही प्रिय है। शंख से जल अर्पित करने पर विष्णु जी अतिप्रसन्न हो जाते हैं। लेकिन देवों के देव महादेव की पूजा में शंख का प्रयोग वर्जित है। भगवान शिव की पूजा में शंख का उपयोग नहीं होता है। ना ही शिव का शंख से अभिषेक किया जाता है और न ही शंख बजाया जाता है। कहते हैं कि एक बार राधा गोकुल से कहीं बाहर गईं थीं। उस समय कृष्ण अपनी विरजा नाम की सखी के साथ विहार कर रहे थे। संयोगवश राधा वहां आ गईं। विरजा के साथ कृष्ण को देख राधा क्रोधित हो गईं और कृष्ण और विरजा को भला बुरा कहने लगीं। लज्जा वश विरजा नदी बनकर बहने लगीं। कृष्ण के प्रति राधा के क्रोध को देखकर भगवान श्री कृष्ण के एक मित्र आवेश में आ गए। वह राधा से आवेश पूर्ण शब्दों में बात करने लगे। मित्र के इस व्यवहार को देख कर राधा नाराज हो गईं। राधा ने श्री कृष्ण के सखा को दानव रूप में जन्म लेने का श्राप दे दिया। तब उन्होने भी राधा को मनुष्य योनि में जन्म लेने का श्राप दे दिया। राधा के श्राप से कृष्ण का मित्र शंखचूड़ नाम का दानव बना। जिसने दंभ नाम के राक्षस के घर जन्म लिया। दंभ ने भगवान विष्णु की तपस्या कर शंखचूड़ को पुत्र रूप में पाया था। जल्द ही शंख चूड़ तीनों लोकों का स्वामी बन बैठा। वह साधू संतों को परेशान करने लगा। इस कारण से भगवान शिव ने शंखचूड़ का वध कर दिया। चूकिं वह भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी का भक्त था तो उन्होनें शंखचूड़ की अस्थियों से शंख का निर्माण किया। शिव ने शंख चूड़ को मारा था। यही वजह है कि शंख भगवान शिव की पूजा में वर्जित माना गया है।

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