vinod upadhyay
vinod upadhyay
vinod upadhyay
रविवार, 9 मार्च 2014
हरि इसलिए बने शालिग्राम और तभी उनको मिला ये श्राप
पुराणों में एक कथा का उल्लेख हैं कि देवी तुलसी को देवों में सर्वप्रथम पूज्य भगवान गणेश ने शाप दिया। इस शाप के फलस्वरूप वह असुर शंखचूड की पत्नी बनीं। जब असुर शंखचूड का आतंक फैलने लगा तो भगवान श्री हरि ने वैष्णवी माया फैलाकर शंखचूड से कवच ले लिया और उसका वध कर दिया।
इसके बाद भगवान श्री हरि शंखचूड का रूप धारण कर साध्वी तुलसी के घर पहुंचे, वहां उन्होंने शंखचूड की तरह ही बर्ताव किया। तुलसी ने पति को युद्ध से आया देख उत्सव मनाया और उनका स्वागत किया। तब श्री हरि ने शंखचूड के वेष में ही शयन किया।
उस समय तुलसी के साथ उन्होंने सुचारू रूप से हास-विलास करते रहे पर तुलसी को इस बार पहले की अपेक्षा कुछ ज्यादा ही आकर्षण अनुभव हुआ। तुलसी समझ नहीं सकीं तब उन्होंने पूछा कि तुम काैन हाे, तुमने मेरा सतीत्व नष्ट कर दिया, इसलिए अब मैं तुम्हें शाप दे रही हूं।
तुलसी के वचन सुनकर श्राप के भय से भगवान श्री हरि ने लीलापूर्वक अपना सुन्दर मनोहर स्वरूप प्रकट किया। उन्हें देख और अपने पति के निधन का समाचार सुनकर तुलसी मूर्छित हो गई।
चेतना आने पर उन्होंने कहा कि 'नाथ आपका ह्वदय पाषाण के सदृश है, उसमें तनिक भी दया नहीं है। आपने छलपूर्वक मेरा धर्म नष्ट किया है देव! मेरे श्राप से अब आप पाषाण रूप होकर पृथ्वी पर रहेंगे।
तब भगवान श्री हरि ने कहा- भद्रे। तुम मेरे लिए इस धरा पर रहकर बहुत दिनों तक तपस्या कर चुकी हो। अब तुम दिव्य देह धारण कर मेरे साथ सानन्द रहो। मैं तुम्हारे शाप को सत्य करने के लिए यहां पाषाण (शालिग्राम) बनकर रहूंगा और तुम एक पूजनीय तुलसी के पौधे के रूप में पृथ्वी पर रहोगी।
गण्डकी नदी के तट पर मेरा वास होगा।बिना तुम्हारे मेरी पूजा नहीं हो सकेगी। तुम्हारे पत्रों और मंजरियों में मेरी पूजा होगी। जो भी बिना तुम्हारे मेरी पूजा करेगा वह नरक का भागी होगा।
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें