vinod upadhyay

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बुधवार, 12 मार्च 2014

शिव के रुदन से जब यहां बन गया था कुंड

हिंदू धर्म विभिन्न मान्यताओं का धर्म है। यह आस्था का धर्म है। हिंदू धर्म की विशालता का अर्थ लगाना मनुष्य के सामर्थ्य से परे है। हिंदू धर्म में तीर्थों का विशेष महत्व है। ऐसे ही तीर्थों में एक तीर्थ है कटासराज। भगवान शिव के पावन तीर्थों में से एक तीर्थ यह भी है। हमारे धर्म ग्रंथों के अनुसार इसे धरती का नेत्र बताया गया है। यहां से जुड़ी हुई विभिन्न मान्यताएं हैं। शिवपुराण के अनुसार माता सती की मृत्यु पर भूतभावन भगवान भोलेनाथ ने इतना अधिक रुदन किया था जिससे अमृत कुंडों का निर्माण हो गया था। एक अजमेर के निकट पुष्कर में और दूसरा कटासराज में जो कि वर्तमान पाकिस्तान में है। इस पवित्र तीर्थ से जुड़ी एक मान्यता एक और भी है कि जब पांडव अज्ञातवास में थे तो उन्होंने 14 वर्षों में से 4 वर्ष यहीं व्यतीत किए थे, और इसी कुंड के किनारे वो महान संवाद हुआ था जहां यक्ष के सभी प्रश्नों का उत्तर देकर युद्धिषठर ने अपने भाईयों को जीवित किया था। इन्हीं मान्यताओं के कारण हिंदू धर्म में प्रमुखता से उल्लेख मिलता है। तथा इस तीर्थ का नाम सभी तीर्थों मे सर्वप्रथम लिया जाता है। भारत पाक विभाजन के बाद यह तीर्थ पाकिस्तान चला गया। वर्तमान में यह पाकिस्तान के चकवाल जिले में आता है। महाशिवरात्रि पर सिर्फ 200 लोगों को भारत सरकार द्वारा यहां जाने की अनुमति है। कटासराज मंदिर के बाहर बने कुंड की मान्यता है कि यहां पर स्नान करने से सारे पाप धुल जाते हैं और मोक्ष प्राप्त होता है। कुंड और यहां का मंदिर पहाड़ियों से घिरे होने की वजह से यहां का दृश्य बहुत ही सुंदर दिखाई देता है। कटासराज सात मंदिरों की एक श्रृंखला है। जिसमें हनुमानगढ़ी, सतगढ़ी सीता रसोई जिसमें लक्ष्मी नारायण का मंदिर प्रमुख है। इनमें से अधिक मंदिरों को हिंदू राजाओं ने 900 वर्ष पूर्व बनवाया था। पर इनमें से कुछ मंदिरों का निर्माण 6वीं शताब्दी के समय किया गया था। इन मंदिरों में अधिकतर का निर्माण चौकोर मंचों पर हुआ है। भगवान राम का मंदिर भी इसी श्रंखला में है। यह मंदिर हरिसिंह हवेली की पूर्व दिशा में स्थित है। पूर्व दिशा में ही इसका प्रवेश द्वार है। जिसमें किसी अन्य दिशा से प्रवेश नहीं किया जा सकता है। यहां हनुमानजी का भी मंदिर है जो नितान्त दक्षिण में स्थित है।

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